ऐसे बर्बादी के कगार पर पहुंचेगा कोल इंडिया
रांची। केंद्र सरकार ने निजी
कंपनियों को बाजार में कोयला बेचने का अधिकार दे दिया। सरकार ने इसके पक्ष में कई तर्क
दिए हैं। उसका कहना है कि इससे कोयले की उपलब्धता बढ़ेगी। कोल इंडिया प्रतिस्पर्द्धा
में आएगा। ग्राहकों को सस्ता कोयला उपलब्ध होगा। विदेशो से कोयला आना बंद होगा। रोजगार
के अवसर खुलेंगे। उसका यह भी कहना है कि कोल इंडिया को इससे कोई खतरा नहीं है। यहां
कर्मियों की नौकरी भी सुरक्षित है।
सस्ता का तर्क बेमानी
विशेषज्ञों का मानना है कि निजी
कंपनियों के कोयला खनन क्षेत्र में आने के बाद कोयले की कीमत कम होने का तर्क बेमानी
है। निजी कंपनियां ‘कम लागत अधिक लाभ’ के सिद्धांत पर चलती है। ऐसे में वह कीमत कम नहीं
करेगी। कंपनी में रखने वाले कुछ कर्मियों को अच्छी सैलरी देगी, अधिकतर को कम पैसे पर रखेगी।
खासकर कामगारों को कोल इंडिया के बराबर तनख्वाह नहीं देगी। बिजली का निजीकरण सरकार
ने किया। इसके बाद बिजली के दाम बढ़े। उसमें किसी तरह की कोई कमी नहीं आई।
बिक्री के लिए हर उपाय
जानकारों का कहना है कि निजी
कंपनियां अपना कोयला बेचने के लिए हर तरह का ‘उपाय’ करेगी। इससे कोयला में भी नई संस्कृति पनपेगी। इस मामले में निजी कंपनियों से
सरकार कंपनियां मुकाबला नहीं कर पाएगी। नतीजतन, सरकारी कंपनियों के कोयले
की बिक्री घटेगी। स्टॉक पड़ा रहेगा। उसमें आग लगेगा। अंतत: सरकार इसे बीमारी कंपनी
घोषित कर देगी। ऐसे में या तो यह बंद हो जाएगा या निजीकरण की राह पर चल निकलेगा।
प्रतिस्पर्द्धा नहीं होगी
विशेषज्ञों का कहना है कि निजी कंपनी और सरकारी कंपनी के बीच
कोई प्रतिस्पर्द्धा नहीं हो सकती है। निजी कंपनी को बैंकों से लोन मिल जाता है। इसका
सूद उसे नहीं देना पड़ता है। पूंजी भी वापस
करने के लिए दबाव नहीं होता है। यानी सरकार का किसी तरह का कोई शिकंजा नहीं होता है।
इसके उलट सरकारी कंपनियों से सरकार किसी न किसी तरह से लाभांवित होना चाहती है।
नए की जरूरत नहीं
कोयला मंत्रालय ने ‘मिशन 2030’ में इस बात का खुलासा किया है कि 1,500 एमटी
उत्पादन करने के लिए नए कोल ब्लॉक की जरूरत नहीं है। वर्तमान से ब्लॉक से ही यह
उत्पादन संभव है। ऐसे में इस तरह का कदम उठाना
किसी खास संदेश की ओर इशारा करता है। जानकारों का कहना है कि विदेशों में कोयला खनन
में लगी कई कंपनियां दिवालिया होने के कगार पर है। उसे जिंदा रखने के लिए यह कदम उठाया
जा रहा है। हालांकि इस स्थिति से लिए कोल इंडिया के कर्मी भी एक हद तक जिम्मेवार हैं।
कंपनी में काफी अधिकारी-कामगार काम ही नहीं करना चाहते हैं। वह मोटी तनख्वाह और सुविधा
भर लेना चाहते हैं।
चार मार्च को हो रही बैठक
निजी कंपनियों को कोयला बेचने का अधिकार दिए जाने से श्रमिक
संगठन नाराज हैं। संगठनों की कोयला इकाई की बैठक चार मार्च को अब दिल्ली में होगी। पहले यह बैठक रांची में होनेे वाली थी। इसमें बड़े आंदोलन की घोषणा होने की उम्मीद है।

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