होलिका दहन रात 7.40 के बाद, शुक्रवार को उड़ेंगे रंग-गुलाल, जाने कैसे करें होलिका दहन का पूजन
रांची। असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म की विजय और परमानंद का आनंदोत्सव का पर्व
है होली। इस बार होलिका दहन के लिए ढाई घंटे का समय मिलेगा। 1 मार्च को
फाल्गुन पूर्णिमा और 2 मार्च को रंग-अबीर के साथ रंगोत्सव होगा। फाल्गुन पूर्णिमा तिथि भद्रा व्यापिनी हो और मध्य
रात्रि के बाद तक लागू हो तो होलिका दहन भद्राकाल में भद्रा के पूंछ काल
के समय करना चाहिए। किसी भी हालत में होलिका दहन भद्रा में नहीं होना
चाहिए।
होलिका दहन मुहूर्त
07:40:47 से 08:49:49 तक ( सायं)
मध्यरात्रि समय:12:30 से 02:15 बजे तक
भद्रा: 1 मार्च को
सुबह 08:58 से शाम 07:40 तक
होली पूजन का समय (1 मार्च)
पूर्वाह्न 11:05 से 12:30
अपराह्न 01:10 से 01:56
शाम 04:50 से 06:15 बजे तक
होलिका दहन के नियम
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक होता है। इस दौरान शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यत: दो नियम ध्यान में रखने चाहिए।
दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने जप-तप से एक ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया कि भगवान श्रीहरि को नृसिंह अवतार लेना पड़ा। हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद थे। वह श्रीहरि को ही भजते थे। पिता चाहते थे कि सारी पूजा छोड़कर वह उसके आधिपत्य को स्वीकार करे। प्रहलाद ने यह स्वीकार नहीं किया। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका थी। उसको वरदान था कि अग्नि भी उसका नुकसान नहीं कर सकती। वह प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठी। होलिका भस्म हो गई। भक्त प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ। होली का व्रत नहीं होता है।
कैसे करें होलिका दहन का पूजन
होलिका दहन मुहूर्त
07:40:47 से 08:49:49 तक ( सायं)
मध्यरात्रि समय:12:30 से 02:15 बजे तक
भद्रा: 1 मार्च को
सुबह 08:58 से शाम 07:40 तक
होली पूजन का समय (1 मार्च)
पूर्वाह्न 11:05 से 12:30
अपराह्न 01:10 से 01:56
शाम 04:50 से 06:15 बजे तक
होलिका दहन के नियम
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक होता है। इस दौरान शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यत: दो नियम ध्यान में रखने चाहिए।
- उस दिन भद्रा न हो। इस बार 1 मार्च को शाम 7.39 तक भद्रा रहेगी।
- पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए यानी उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।
दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने जप-तप से एक ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया कि भगवान श्रीहरि को नृसिंह अवतार लेना पड़ा। हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद थे। वह श्रीहरि को ही भजते थे। पिता चाहते थे कि सारी पूजा छोड़कर वह उसके आधिपत्य को स्वीकार करे। प्रहलाद ने यह स्वीकार नहीं किया। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका थी। उसको वरदान था कि अग्नि भी उसका नुकसान नहीं कर सकती। वह प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठी। होलिका भस्म हो गई। भक्त प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ। होली का व्रत नहीं होता है।
कैसे करें होलिका दहन का पूजन
- गुलाल, काली उड़द की दाल, काले तिल, जौं, गुजिया आदि जलती होली में अर्पण करें
- इसके बाद गेहूं की बालियां अग्नि में भूनें। (बाद में इसका प्रशाद ग्रहण करें)
- ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: का जाप करते हुए होलिका की 3 से 7 परिक्रमा करेंं
- इस दौरान जल लगातार गिराते जाएं।
- काले तिल, काली उड़द, जौ अर्पण करने से ग्रहों की पीड़ा शांत होती है।
- अगले दिन होलिका की राख घर पर लाएं।

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