राधा और हनुमान की भक्ति श्रेष्ठ : स्वामी सत्यानंद परमहंस
रांची। समय से हटकर कोई निर्णय नहीं हो
सकता है। सब कुछ समयबद्ध होता है। बसारगढ़ तुपुदाना स्थित ब्रम्ह विद्यायल एवं
आश्रम में 15 दिवसीय प्रवाह के अंतिम दिन स्वामी सत्यानंदजी परमहंस ने उक्त बातें
कही। उन्होंने कहा कि संसार में किसी के पास अनंत समय नहीं है। भक्ति के लिए भी
समय निकालना होता है। भक्ति सदैव सुख प्रदान करती है। हर व्यक्ति की चाह सुख पाने
की होती है। सवाल निष्ठा का है। आपकी निष्ठा जितनी मन, तन कर्म, वचन
से मजबूत होगी, आपको उतना ही आनंद प्राप्त होगा। अहिरावण ने
जब राम लक्षमण का अपहरण कर लिया तो हनुमान को छोड़ सभी निराश थे। लेकिन हनुमान की
निष्ठा थी कि उन्होंने अहिरावण से राम-लक्षमण को मुक्त कराया। जिसकी चाह होती है, जो चाह होती है,
वही उसे प्राप्त होता है। भक्तों में हनुमान श्रेष्ठ हुए। प्रेम में राधा की तुलना
किसी से हो ही नहीं सकती है। राधा ने पत्नी बनने की चाह नहीं की, रानी बनने की चाह नहीं की। कृष्ण के लिए सब कुछ
छोड़ा, यहां तक की कृष्ण को भी छोड़ दिया उन्हें
द्धारिका जाने दिया। राधा संग गोपियां वृदांवन में ही रह गयी। दुनिया में आगे और
पीछे का आदमी हर क्षेत्र में है। आगे वाले से श्रद्धा और पीछे वाले से प्रेम करना
सीखो। नीति कहती है जो चाह रहा है,
उसे ही दें।
भक्ति में धैर्य की आवश्यकता है। जाउं कहां तजि शरण तुम्हारे। जैसे
कर्त्ता धर बसै,
वैसे बसे विदेश। जिसे करना है उसके लिए
घर और बाहर कुछ नहीं होता। कोई समस्या समस्या नहीं रह जाती है। भक्ति के लिए कई
जन्मों तक प्रयास किये जाते हैं, तब मिलती है। भक्त धर्य नहीं खोता है।
मृत्यु अगर भयकारी है तो उसके पहले और बाद जीव बैचेन रहता है। लेकिन भक्ति पाने की
चाह में मृत्यु के भय से भी उबर जाता है। संसार में किसी चीज की कमी नहीं है।
आवश्कयता है कि हमें क्या चाहिए यह तय करें। राधा ने परिवार और भक्ति का अनूठा
कृत्य प्रस्तुत किया। धैर्य क्यों आवश्यक है, इस
पर उन्होंने कहा कि एक बार दो भक्तों ने समाधि लगाने की सोची। एक इमली के पेड़ के
नीचे तो दूसरा पीपल के पेड़ के नीचे बैठा। इसी बीच नारद मुनि उस ओर से गुजरे।
भक्तों ने जानना चाहा कि उनकी समाधि कितने में लग जाएगी। नारद ने पीपल के नीचे
वाले भक्त से कहा कि जितना इस पीपल में पत्ता है उतने दिन लगेंगे। वह घवड़ा गया और
उठकर घर भागा। दूसरे को नारद ने यही जबाव दिया उसने कहा चलो यह तो तय है कि मिलेगा, चाहे समय कितना भी लगे।
वर्तमान समय में धैर्य
की कमी पर स्वामी जी ने कहा कि लेन में चलें। लेकिन कुछ लोग अकबकाये से चलते हैं। सड़क
के बजाये खेत में पहुंच जाते हैं। जो नियम है वह जीवन में व्यवहार जगत और भक्ति
जगत दोनों पर लागू होता है। जैसे छपरा से चलकर स्वामी परमहंस दयाल ने जो टेरी में
भक्ति फैलाया वह आज फिर से छपरा में स्थापित हुआ। इसमें समय लगा। इस कार्य में
लगभग दौ सौ साल लग गये। 18वीं सदी के आंरभ में परमहंस दयाल काशी के स्वामी
केदारनाथ से मंत्र दीक्षा लेकर घूमते हुए टेरी जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान के
सीमा पर है वहां पहुंचे। वहां तक उन दिनों ब्रितानी सरकार कायम थी। कालांतर में
स्थितियों को देखते हुए आश्रम नांगली, आनंदपुर
और गढ़वा काशी घाट में स्थापित हुआ। इसके बाद स्वामी शिवधार्मानंद जी ने गढ़वा घाट
के स्वामी जी की इच्छा के अनुसार राजपुर में ब्रम्हा विद्यालय और आश्रम की स्थापना
की। इस प्रकार काशी का बीज खेती टेरी में हुई, लेकिन
फिर गंगा के किनारे छपरा में स्थापित हुई। छपरा के रौजा में वर्तमान पांचवी
पादशाही 108 श्री स्वामी सत्यानंद परमहंस जी के मार्गदर्शन में अपने गुरुदेव
शिवधर्मानंद जी आदेश का पालन करते हुए भव्य आश्रम का निमार्ण पूर्ण किया। अध्यात्म
और भक्ति में निरंतरता बनाये रखना होता है। भक्ति अपनी होती है। अपना भाव बनायें।
प्रवास के अंतिम दिन अजय कुमार ने परमहंस दयाल भजन और गीत प्रस्तुत किया। स्वामी
जी गया, पटना आश्रम में रुकते हुए छपरा के लिए सोमवार की
सुबह प्रस्थान करेंगे।

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