POCSO एक्ट पर सरकार का यू-टर्न
नई दिल्ली। कठुआ एवं उन्नाव में बलात्कार की घटनाओं को लेकर देशभर में जारी रोष के बीच
केंद्र सरकार यू-टर्न ले लिया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 12 साल से कम
उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म के दोषियों को अदालतों से मौत की सजा देने
संबंधी एक अध्यादेश को मंजूरी दे दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की
अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस आपराधिक कानून संशोधन
अध्यादेश 2018 को मंजूरी दी गई। केंद्र सरकार इस नए अध्यादेश को लाने के
साथ ही ऐसे कदम भी उठाएगी जिससे दुष्कर्म के मामलों की जांच तेजी से हो और
पीड़ित को जल्द से जल्द इंसाफ मिल सके। हालांकि फरवरी में केंद्र ने
सर्वोच्च न्यायालय से कहा था कि हर बाल यौन उत्पीडऩ के मामले का जवाब मौत
की सजा नहीं है और पॉस्को अधिनियम, 2012 में अपराध के स्तर के अनुसार
अलग-अलग सजा का प्रावधान है।
संशोधन में बदलाव का केंद्र ने किया था विरोध
जानकारी के अनुसार फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने पोक्सो एक्ट के तहत देश भर की अदालतों में लंबित मामलों की जानकारी मांगी थी। कोर्ट आठ महीने की बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म के मामले की सुनवाई कर रहा था। इस बीच केंद्र सरकार ने बच्चों के साथ बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा देने का समर्थन नहीं किया। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा ने कोर्ट से कहा था कि मौत की सजा सभी समस्याओं का समाधान नहीं है। हालांकि याचिकाकर्ता अलख आलोक श्रीवास्तव ने पॉक्सो एक्ट के तहत 0-12 साल के बच्चों के साथ बलात्कार करने के दोषियों को मौत की सजा देने की मांग की थी।
क्या है पोक्सो एक्ट
प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों पर कार्रवाई की जाती है। बच्चों के साथ की जाने वाली लैंगिक उत्पीडऩ के तहत अलग-अलग सजा का प्रावधान है। पुराने कानून के मुताबिक किसी बच्चे के साथ दुष्कर्म होता है तो उसके दोषी को सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड लगाया जा सकता था। नए कानून में 12 साल की बच्चियों से रेप पर फांसी की सजा, 16 साल से छोटी लड़की से गैंगरेप पर उम्रकैद की सजा, 16 साल से छोटी लड़की से रेप पर कम से कम 20 साल तक की सजा दी जा सकेगी। इस तरह के मामलों में कोर्ट को 6 महीने के अंदर अपना फैसला सुनाना होगा। नए संशोधन के तहत रेप केस की जांच 2 महीने में पूरी करनी होगी।इसके अलावा दोषी को अग्रिम जमानत भी नहीं दी जाएगी।´
संशोधन में बदलाव का केंद्र ने किया था विरोध
जानकारी के अनुसार फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने पोक्सो एक्ट के तहत देश भर की अदालतों में लंबित मामलों की जानकारी मांगी थी। कोर्ट आठ महीने की बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म के मामले की सुनवाई कर रहा था। इस बीच केंद्र सरकार ने बच्चों के साथ बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा देने का समर्थन नहीं किया। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा ने कोर्ट से कहा था कि मौत की सजा सभी समस्याओं का समाधान नहीं है। हालांकि याचिकाकर्ता अलख आलोक श्रीवास्तव ने पॉक्सो एक्ट के तहत 0-12 साल के बच्चों के साथ बलात्कार करने के दोषियों को मौत की सजा देने की मांग की थी।
क्या है पोक्सो एक्ट
प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों पर कार्रवाई की जाती है। बच्चों के साथ की जाने वाली लैंगिक उत्पीडऩ के तहत अलग-अलग सजा का प्रावधान है। पुराने कानून के मुताबिक किसी बच्चे के साथ दुष्कर्म होता है तो उसके दोषी को सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड लगाया जा सकता था। नए कानून में 12 साल की बच्चियों से रेप पर फांसी की सजा, 16 साल से छोटी लड़की से गैंगरेप पर उम्रकैद की सजा, 16 साल से छोटी लड़की से रेप पर कम से कम 20 साल तक की सजा दी जा सकेगी। इस तरह के मामलों में कोर्ट को 6 महीने के अंदर अपना फैसला सुनाना होगा। नए संशोधन के तहत रेप केस की जांच 2 महीने में पूरी करनी होगी।इसके अलावा दोषी को अग्रिम जमानत भी नहीं दी जाएगी।´
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