परती जमीन में चारा फसल की करें खेती
रांची। राज्य में
पशुओं के लिये मात्र 33 प्रतिशत ही चारा उत्पादन होता है। छोटे आकार की जोत भूमि के कारण चारा
उत्पादन को बढ़ावा नहीं मिल पाया है। परती और बंजर भूमि में चारा फसल की खेती की
काफी संभावनाए हैं। इसकी उन्नत तकनीकों को अपनाकर 67 प्रतिशत
हरे चारे की कमी पूरी की जा सकती है। इसे ग्रामीण व्यवसाय के रूप में व्यापक
स्वरुप दिया जा सकता है। उक्त बातें बिरसा कृषि विवि के कुलपति डॉ परविंदर कौशल ने
की। वे हरा चारा उत्पादन पर पांच दिवसीय मास्टर ट्रेनर्स प्रशिक्षण के समापन पर शनिवार
को बोल रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने मास्टर ट्रेनर्स किसानों को हरा चारा प्रबंधन
पर सलाह दी। सभी प्रशिक्षणार्थियोंको को सर्टिफिकेट और चारा किट भी दिया।
यह कार्यक्रम झारखंड
ट्राइबल इम्पावरमेंट एंड लाइवलीहुड प्रोजेक्ट (जेटीईअलपी) के सौजन्य से बीएयू के
पशुचिकित्सा कॉलेज द्वारा कराया गया। कृषक भवन में आयोजित इस प्रोग्राम में दुमका,
साहेबगंज, गोड्डा और पाकुड़ के 30 किसानों ने भाग लिया। जेटीईअलपी के सहयोग से हरा चारा
उत्पादन विषय पर यह दूसरा प्रशिक्षण प्रोग्राम थाI समारोह का संचालन प्रोग्राम
समन्वयक डॉ आलोक कुमार पांडेय और धन्यवाद डॉ सुशील प्रसाद ने किया।
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