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जजों के वेतन में दोगुनी बढ़ोतरी

  • कामकाज में अब और दिखेगी पारदर्शिता
  •  सुप्रीम कोर्ट के चार जजों द्वारा उठाए गए मुद्दों का असर
  •  हाई कोर्ट की तर्ज पर तैयार किया जाएगा रोस्टर
  •  न्यायाधीशों के बीच कामकाज का बंटवारा सार्वजनिक रहेगा
  •  प्रधान न्यायाधीश ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस एसएन शुक्ला से न्यायिक कामकाज छीना
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन में दोगुने से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस संबंध में संसद द्वारा पारित विधेयक को मंजूरी दे दी है। प्रधान न्यायाधीश का मासिक वेतन वर्तमान के एक लाख रपए से बढ़कर अब 2.80 लाख रपए हो जाएगा। इसी तरह से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों का मासिक वेतन ढ़ाई लाख रपए हो जाएगा। उनका वर्तमान में वेतन 90 हजार रपए है।  विधि मंत्रालय द्वारा अधिसूचित कानून के अनुसार, फिलहाल 80 हजार रपए प्रति माह वेतन पा रहे उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को अब दो लाख 25 हजार रपए मिलेंगे।

सुप्रीम कोर्ट के कामकाज में अब और पारदर्शिता दिखेगी। दिल्ली हाईकोर्ट तथा कई अन्य हाईकोटरे की तर्ज पर रोस्टर तैयार किया जाएगा, जिससे न्यायाधीशों के बीच कामकाज का बंटवारा सार्वजनिक रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों द्वारा पारदर्शिता को लेकर उठाए गए मुद्दों पर बुधवार को उनकी सीजेआई के साथ एक बार फिर बैठक हो सकती है। सूत्रों के अनुसार, रोस्टर को लेकर उठाए गए सवालों पर विचार-विमर्श का दौर जारी है। जस्टिस जस्ती चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने 12 जनवरी को संवाददाता सम्मेलन में पारदर्शिता को लेकर अपना मत व्यक्त किया था। उसी के बाद से रोस्टर को और अधिक कारगर बनाने के प्रयास जारी हैं।

 बताया जाता है कि रोस्टर में न्यायाधीशों के कामकाज का बंटवारा किया जाएगा, जिससे किसी भी तरह का भ्रम पैदा न हो। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी रोस्टर को दिल्ली हाईकोर्ट की तर्ज पर तैयार करने की मांग की थी। बार एसोसिएशन के पदाधिकारी इस सिलसिले में सीजेआई से मिल चुके हैं। कामकाज छीना : इस बीच, जजों के नाम पर रिश्वत के कथित मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय जांच रिपोर्ट के आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस एसएन शुक्ला से न्यायिक कामकाज छीन लिया है। मेडिकल कालेजों में दाखिलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद हाई कोर्ट ने एक मेडिकल कालेज को एमबीबीएस में दाखिले की अनुमति प्रदान कर दी थी।

सीजेआई ने मद्रास हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस इन्द्रा बनर्जी, सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एसके अग्निहोत्री और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जज जस्टिस पीके जायसवाल को आंतरिक जांच का जिम्मा सौंपा था। तीन सदस्यीय टीम ने जस्टिस शुक्ला के कामकाज को न्यायिक मर्यादाओं के विपरीत पाया था। बताया जाता है कि रिपोर्ट पर अमल करते हुए सीजेआई ने जस्टिस शुक्ला से इस्तीफा देने को कहा। उनके इस्तीफा देने से इंकार करने पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को जस्टिस शुक्ला से न्यायिक काम वापस लेने की सिफारिश की गई। सीजेआई जजेज इन्क्वायरी एक्ट,1968 के तहत राष्टपति से जस्टिस शुक्ला को पद से हटाने की सिफारिश कर सकते हैं। उसके बाद महाभियोग की कार्रवाई शुरू हो सकती है।

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