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खाता न बही, रांची नगर निगम जो कहे . . .


रांची। ‘आपने कचरा का बिल नहीं दिया है। दो हजार रुपये आपका बकाया है। इसे जल्‍द से जल्‍द आकर जमा कर दें।‘
‘कचरा उठाने गाड़ी नियमित नहीं आती है। महीने में चार से पांच दिन ही आती है। ऐसे में पैसा कैसे दें।‘
‘ये सब मैं नहीं जानता। पैसा जमा करें, वर्ना आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।‘
रांची शहर के एक आम आदमी और नगर निगम की एजेंसी के कर्मचारी के बीच बातचीत का कुछ अंश है। इस बीच कई और भी बातें हुई है। कचरा, पानी, होल्डिंग टैक्‍स सहित अन्‍य तरह के बिल जमा करने संबंधी फोन रांची नगर निगम की ओर से लगातार लोगों को किए जा रहे हैं। फोन करने वाले कुछ सुनना नहीं चाहते हैं, उनका एक मात्र ध्‍यये है आम लोगों को बिल जमा करने के लिए दबाव डालना है। इसके लिए बोलने के क्रम में हर तरह के शब्‍दों का प्रयोग किया जा रहा है।

ऐसे बन रहा है बिल
निगम की एजेंसी के कर्मचारी महीना के हिसाब से कचरा का बिल बना दे रहे हें। उन्‍हें इस बात से मतलब नहीं है कि गाड़ी कचरा उठाने जाती भी है या नहीं। कचरा उठाने आने वाले गाड़ी के कर्मचारियों का कहना होता है कि संसाधन का अभाव है। ऐसे में घर-घर जाकर हर दिन कचरा उठाना संभव नहीं है। कई इलाकों में दस दिनों में एक बार गाड़ी जा रही है। शिकायत करने पर भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सुपरवाईजर आकर निर्देश देकर चले जाते हैं। इसपर अमल नहीं हो रहा है। हालांकि कुछ इलाकों में नियमित गाड़ी जा रही है। लोगों का कहना है कि पैसा देने में उन्‍हें कोई परेशानी नहीं है, पर नियमित कचरा तो उठे। बिना कचरा उठाए बिल मांगना उचित नहीं है।

पानी का और बुरा हाल
पानी के बिल की स्थिति और बुरी है। लोगों को 10 से 12 साल के बकाया बिल का भुगतान करने को कहा जा रहा है। इसके लिए हजारों रुपये की मांग की जा रही है। कुछ को बिल भेजा रहा है। कुछ को फोन पर बिल जमा करने की हिदायत दी जा रही है। बिल बनाने के क्रम में पानी का कनेक्‍शन और घर का रकबा देखा जा रहा है। पानी मिलने या नहीं मिलने से कोई एजेंसी को कोई मतलब नहीं है। क्रेडाई के अध्‍यक्ष कुमुद झा ने इस बाबत झारखंड चैंबर को अपना दर्द भी बताया था। उनका कहना था कि कनेक्‍शन के बाद उन्‍हें एक बूंद पानी नहीं मिला। उन्‍हें हजारों रुपये का बिल थमा दिया गया है। उन्‍होंने पानी का मीटर भी लगा रखा है। हालांकि उसकी रिडिंग लेने कोई नहीं आया है।

वाटर हार्वेस्टिंग की जांच नहीं
अधिकतर घरों में बनाए गए वाटर हार्वेस्टिंग की जांच नहीं की जा रही है। फॉर्म भरने वाले एजेंसी के बहुत कर्मचारियों ने मकान मा‍लिक से पूछे बिना वाटर हार्वेस्टिंग नहीं होने का टिक मार दिया है। इसके कारण लोगों को डेढ़ गुणा होल्डिंग टैक्‍स देना पड़ रहा है। बिल जमा करने वाले काउंटर में बोलने पर जवाब मिलता है कि ‘फार्म में लिखा है कि आपके यहां वाटर हार्वेस्टिंग नहीं है, पैसा तो देना होगा।’ लोगों को अपनी बात बताने के लिए चने चबाने पड़ रहे हें।

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