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मुर्गी पालन से आय बढ़ाने के दे रहे टिप्‍स

रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के पशुचिकित्सा संकाय में मुर्गी पालन से आय बढ़ाने की जानकारी किसानों को विशेषज्ञों दे रहे हैं। इसे लेकर तीन दिवसीय तीन प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा हे। प्रशिक्षण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की पोल्ट्री विषयक अखिल भारतीय समन्वित परियोजना के अन्तर्गत जनजातीय उपयोजना के अधीन संचालित किया  गया। इसमें गुमला जिले के भरनो प्रखंड के 75 जनजातीय किसानों ने भाग लिया। किसानों को मुर्गियों की विभिन्न नस्लों को पालने की तकनीक, रोग प्रबंधन के साथ-साथ बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग से आय बढ़ाने के बारे में बताया गया। किसानों को बीएयू द्वारा विकसित की गई झारसीम नस्ल की मुर्गी के प्रबंधन की विशेष जानकारी दी गई।
पोल्ट्री परियोजना प्रभारी सह अपर निदेशक अनुसंधान डॉ सुशील प्रसाद ने बताया कि झारसीम कुक्कुट के पंख का रंग आकर्षक होता है। इसे समशीतोष्ण परिस्थितियों में अच्छी तरह पाला जा सकता है। चूजों को ब्रूडिंग के दौरान पहले चार सप्ताह तक विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। कुक्कुटों को मारेक्स, न्यूकेसल/रानीखेत और आईबीडी बीमारियों से बचने के लिए टीकाकरण जरूर कराना चाहिए। चूजों को पांच दिनों के दौरान पानी में रोग प्रतिकारक दवा की खुराख देनी चाहिए। छह सप्ताह की आयु के बाद इन्हें आंगनबाड़ी में चरने के लिए छोड़ा जा सकता है।
डॉ प्रसाद ने कहा कि ग्रामीण आदिवासी क्षेत्रों और विविध मौसम में झारसीम नस्लों का आसानी से बैकयार्ड पद्धति में पालन किया जा सकता है। इस नस्ल के पालन में दाना पर कम खर्च और मांस की अधिक प्राप्ति होती है। इससे किसानों की आय में बढ़ाने में मदद मिलती है। इन तीन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में पशु विशेषज्ञ डॉ सुशील प्रसाद डॉ रविन्द्र प्रसाद और शोध सहायक डॉ निशांत पटेल ने किसानों को मुर्गी पालन पर प्रशिक्षण दिया। परियोजना के कुक्कुट संबंधी जनजातीय कार्यक्रम के अधीन प्रशिक्षण से 60 पुरुष और 15 महिला जनजातीय किसानों को झारसीम नस्ल के 10-10 मुर्गी के बच्चे, दाना बर्तन, पानी बर्तन, दवा और 40 किलो दाना दिए जायेंगे। कार्यक्रम अनुसंधान निदेशालय, बीएयू की कुक्कुट पालन परियोजना के अन्तर्गत चलाया जा रहा है।

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