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खेती योग्य जमीन में भारी तत्व के स्तर पर होगा शोध


  • भोपाल के मृदा वैज्ञानिकों और बीएयू के वैज्ञानिकों ने रणनीति तैयार की
रांची। कैडमियम, क्रोमियम और शीशा के बढ़ते स्तर से खेती योग्य जमीन प्रदूषित हो रही है। ऐसे भारी तत्वों से सब्जी, फल और अन्य कृषि उपज बिषाक्त हो रहे हैं ऐसी वस्‍तुओं के खाने से आदमी में कैंसर और अन्य गंभीर रोगों की शिकायत बढ़ती जा रही है। इस समस्या के मद्देनजर आईसीएआर के भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल संस्थागत परियोजना के अधीन देश के अलग-अलग प्रकार की जमीन में भारी तत्व के सहन स्तर पर शोध की योजना चला रहा है।

झारखंड में इस शोध योजना को आगे बढ़ाने के लिए 24 अप्रैल को भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ एम वासंदा और डॉ एमएल दोतार्निया ने बीएयू के मृदा बैज्ञानिक डॉ बीके अग्रवाल से मुलाकात की। चर्चा कर झारखंड में शोध की रणनीति तैयार की भोपाल के ये वैज्ञानिक झारखंड के चार दिवसीय दौरे पर हैं। इस दौरान राज्य के शहरी क्षेत्रों के समीप की प्रदूषित भूमि और पौधा नमूनों को जमा करेंगे। भोपाल की प्रयोगशाला में जांच कर ऐसी भूमि में भारी तत्व के सहन स्तर की सीमा का निर्धारण करेंगे।

डॉ दोतार्निया ने बताया कि भारतीय कृषि वैज्ञानिकों को भारी तत्व से प्रदूषित भूमि के बारे में काफी सीमित जानकारी है। देश में पहली बार भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल द्वारा बृहद और सुव्‍यवस्थित तरीके से भारी तत्व से प्रदूषित भूमि पर शोध किया जा रहा है। बीएयू के मृदा बैज्ञानिक डॉ अग्रवाल के सहयोग से राज्य में भारी तत्व (कैडमियम, क्रोमियम और शीशा) पर शोध हो रहा है। इस प्रकार की शोध गतिविधियों से शोध और अकादमिक क्षेत्र में राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से कृषि तकनीकी विकास को बल मिलेगा।

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