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शिक्षा माफिया को उखाड़ फेंकने के लिए केंद्र सरकार का एक्शन प्लान तैयार

नई दिल्ली। मोदी सरकार ने शिक्षा क्षेत्र के माफिया को जड़ से उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठा लिया है। इनमें फर्जी डिग्री माफिया, नक़ल माफिया, पुस्तक माफिया, यूनिफॉर्म माफिया, प्राइवेट स्कूल माफिया शामिल हैं। सरकार का मानना है कि अगले तीन-चार महीनों में वह इन पर पूरी तरह लगाम लगाकर हर साल जनता के आठ से दस हजार करोड़ रुपये बचाएगी। सभी कक्षाओं की एनसीईआरटी द्वारा हर साल छापी गई किताबों का कुल मूल्य 650 करोड़ रुपये होता है। लेकिन चूंकि ये किताबें नया सत्र शुरू होने के बाद मार्केट में आती हैं, इसलिए मजबूरन छात्रों को निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें खरीदनी पड़ती हैं। निजी प्रकाशक हर साल 3900 करोड़ रुपये स्कूली किताबों की बिक्री से कमाते हैं। यानी अभिभावकों को सवा तीन हजार करोड़ का शुद्ध नुकसान। 

लेकिन इस साल सीबीएसई की अध्यक्ष अनीता करवाल ने एनसीईआरटी पर दबाव डालकर सभी किताब फरवरी में ही छपवा कर बाजार में भिजवा दीं। उन्होंने ये किताबें ऑनलाइन खरीदने के लिए एक पोर्टल भी बनवाया जिससे लोगों को स्टेशनरी की दुकान पर लाइन लगाने की जरूरत नहीं होगी। लेकिन प्रकाशक माफिया चुप बैठने वाला नहीं था। कई प्रकाशकों ने सत्तारूढ़ पार्टी में अपने संपर्कों के सहारे ‘पेट पर लात न मारने’ की दुहाई देते हुए ये फैसले वापस लेने का दबाव बनाया। हालांकि उनके मंसूबे कामयाब न हो सके।

फर्जी डिग्री माफिया
सरकार की प्राथमिकता फर्जी बीएड कॉलेजों पर रोक लगाना है जो बिना पढ़ाई कराए और बिना परीक्षा लिए डिग्री बांट रहे हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं  जो पांच से दस लाख रुपये लेकर सरकारी नौकरी की व्यवस्था कर देते हैं। समझा जा सकता है कि ऐसे ‘प्रखर और मेधावी’ शिक्षक बच्चों को क्या पढ़ा रहे हैं और ऐसे बच्चों का क्या भविष्य है?

देश के 16000 बीएड कॉलेजों में से 400 ने सरकार द्वारा मांगी जानकारी देने से इंकार कर ख़ुद को शक के घेरे में खड़ा कर दिया है। हालांकि उनमें से 17 संस्थानों ने सरकारी आदेश के खिलाफ कोर्ट से स्टे ले लिया है। एक अनुमान के अनुसार हर साल फर्जी बीएड माफिया देश भर में 800 करोड़ रुपये कमा रहा है।

नकल माफिया
पेपर लीक से बचने के लिए सरकार ने सैटेलाइट के जरिए देश के 4000 परीक्षा केंद्रों पर परीक्षा पत्र अंतिम समय पर भेजने के विकल्प पर विचार किया था। लेकिन चूंकि हर सेंटर पर इंटरनेट उपलब्ध नहीं है, इसलिए सीडी भेजने का विकल्प चुना गया। चूंकि शिक्षा समवर्ती सूची में है इसलिए केंद्र को शिक्षा क्षेत्र के दूसरे माफिया से निपटने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर ही करना होगा।

उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य में नकल कराना एक उद्योग बन गया था। सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही यह हर साल 500 करोड़ का धंधा है। सीसीटीवी कैमरे जैसी तकनीक के इस्तेमाल से उत्तर प्रदेश सरकार ने नकल पर किसी हद तक रोक लगा दी है। इस साल लगभग 20 फीसदी छात्र सख्ती के डर से परीक्षा देने ही नहीं गए।

फीस और यूनिफॉर्म माफिया
फीस बढ़ाने पर रोक लगाने के लिए राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश ने अलग-अलग कानून बनाए हैं। गुजरात के कानून पर तो वहां के हाईकोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। इसके अनुसार प्राइमरी और सेकेंडरी के लिए 15000 और 25000 रुपये साल की फीस निर्धारित कर दी गई है। वहीं, राजस्थान में फीस बढ़ाने के लिए बनाई समिति में अभिभावकों की मंजूरी जरूरी की गई है। जबकि मध्य प्रदेश में 10 फीसदी की सीमा तय की गई है।

पिछले सप्ताह योगी आदित्यनाथ की सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए पांच साल से पहले यूनिफॉर्म बदलने पर रोक लगा दी है। किसी दुकान विशेष से खरीदने के निर्देश देने पर भी पाबंदी है। साथ ही एक साल में केवल पांच फीसदी फीस ही बढ़ाई जा सकेगी। अगर दूसरे मदों को भी जोड़ दें तो भी केवल आठ फीसदी की बढ़ोत्तरी की ही इजाजत दी गई है। पूरी फीस एक मुश्त नहीं वसूल की जाएगी। उल्लंघन पर स्कूल की मान्यता रद्द करने जैसे सख्त कदम उठाए जाएंगे। इससे अभिभावकों को दो हजार करोड़ रुपये साल की बचत होने का अनुमान है।

खुद स्कूलों ने बनाए नियम
मजे की बात यह है कि ये सारे नियम यूपी सरकार ने नहीं बल्कि निजी स्कूल मालिकों की एक संस्था ने बनाए हैं। इस संस्था से जुड़े शिक्षाविद शिशिर जयपुरिया कहते हैं कि फिक्की के शिक्षा विंग के साथ मिलकर वर्कशॉप आयोजित कर उन्होंने अभिभावकों की राय जानी और फिर स्कूल मालिकों को इन नियमों का पालन करने के लिए तैयार किया। इसके बाद उसने उत्तर प्रदेश सरकार को प्रस्तावित बिल का प्रारूप भेजा जिसे पिछले सप्ताह ही राज्य मंत्रिमंडल ने पारित कर दिया है। अब केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय इसी बिल को दूसरे राज्यों को भेजकर उनसे यूपी मॉडल अपने यहां लागू करने को कहेगी।

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