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सत्‍ता हारी न विपक्ष, हारी राज्‍य की जनता

रांची। झारखंड का विधानसभा सत्र अनिश्चित काल के लिए स्‍थगित हो गया। इसकी घोषणा 30 जनवरी को हुई। विधानसभा बजट सत्र हंगामे का भेंट चढ़ गया। इसमें न सत्‍ता पक्ष हारा न विपक्ष। दोनों अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहे। हारी तो सिर्फ जनता। सत्र के दौरान सिर्फ एक ही मुद्दा रहा- सीएस राजबाला वर्मा, डीजीपी डीके पांडेय और एडीजी अनुराग गुप्‍ता को हटाएं। इन तीनों अफसरों को बर्खास्‍त करें। विपक्ष को इन्‍हें हटाना राज्‍य की साढ़े तीन करोड़ जनता की समस्‍या से अधिक जरूरी लगा। यही कारण है कि सदन के बाहर और भीतर दोनों जगह इसकी ही चर्चा होती रही। वहीं, सरकार के लिए इन अफसरों को बनाए रखना नाक का सवाल हो गया। सत्र चलाने के लिए हुई सर्वदलीय बैठक में भी सरकार ने साफ कर दिया कि इन अफसरों को हटाने के लिए अलावा किसी अन्‍य मुद्दे पर बात हो। सरकार और विपक्ष चाहता तो इसका हल निकल सकता था। इसके लिए आपसी सामंजस्‍य बनाना होता। हालांकि सवाल झुकने या कहें समझौता करने का रहा। जनता के सवाल पर दोनों पक्ष थोड़ा-थोड़ा झुक जाते तो शायद जनता के दुख-दर्द पर सत्र में चर्चा हो सकती थी। आज भी जनता की सैकड़ों समस्‍याएं मुंह बाये खड़ी है। विद्यार्थियों के प्रमाण पत्र तय समय अवधि में नहीं बन रहे हैं। अनुमंडल और प्रखंड कार्यालय से अफसर गायब रह रहे हैं। किसानों को समय पर बीज और बीमा के पैसे नहीं मिल रहे हैं। अस्‍पतालों में सुविधाएं नहीं है। बेरोजगार युवकों के साथ छलावा हो रहा है। ऐसे सवालों को सदन उठाना विपक्ष की जिम्‍मेवारी होती है। विपक्ष खुद तय करें कि उसने अपनी जिम्‍मेवारी कितनी निभाई। मंथन सरकार को भी करना होगा कि जनता की समस्‍याएं को सुनना जिद से अधिक जरूरी होती है।

समापन भाषण दिया मुख्‍यमंत्री ने
चतुर्थ विधान सभा के बजट सत्र के समापन पर मुख्‍यमंत्री रघुवर दास ने समापन भाषण दिया। उन्‍होंने कहा कि  हमें जो सेवा करने का मौका मिला, हमने तीन वर्ष में संकेत दिया है,  हमने ऐसी रेखाएं खींची है, उनकी आलोचना करके तथ्यों पर पर्दा नहीं डाला जा सकता। व्यक्तिगत आरोप लगाकर, अपनी झुंझलाहट, कड़वाहट प्रकट करके, हमारी उपलब्धियां पर पानी नहीं फेरा जा सकता। बजट प्रस्ताव पर मेरी इच्छा थी कि राज्यहित में कुछ सुझाव आयेंगे। कमियां उजागर करने का काम विपक्षी सदस्यों द्वारा सदन में रखे जायेंगे। साल 2018-19 का बजट अच्छा बजट है। प्रतिपक्ष को निराश होना पड़ा है, आलोचना के जितने मुद्दे मिलने चाहिए थे, वे नहीं मिले। बजट का स्वागत समाज के सभी वर्गों ने किया है कहीं न कहीं से, किसी न किसी की ओर से कुछ आलोचना होती रही है, यह स्वाभाविक है, क्योंकि कोई भी बजट सम्पूर्ण नहीं हो सकता है। हर बजट में उस वर्ष की वास्तविकताओं तथा राज्य की दीर्घ और अल्पकालीन आवश्यकताओं को ध्यान में रखना पड़ता है। उन्‍होंने लंबे समापन भाषण में सरकार की उपलब्धियां भी गिनाई। होली की शुभकामनाएं दी।

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