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बुरा न मानो होली है, पर . . .

रांची। बुरा न मानो होली हैहोली के बारे में यही कहा जाता है। इस वाक्‍य के कर्ह मायने हैं। इसके कहने के पीछे की भावना बहुत बड़ी थी। हालांकि यह भावना अब खत्‍म होती जा रही है। इसकी आड़ में लोग अब अपनी मनमानी करने लगे हैं। अर्थ का अनर्थ कर रहे हैं। इसकी वजह से रंगों के इस त्‍योहार का असली मकसद भी खोता जा रहा है। कई लोग इस पर्व में घरों में सिमट कर रह जा रहे हैं।

अब तो लोग यह भी कहने हैं कि होली पर भी कई कदम का बुरा भी मानना चाहिए। इसस पर्व पर युवकों द्वारा हाल के दिनों में छेड़छाड़ भी की जाने लगी है। इसका बुरा मानना चाहिए। कुछ लोग गाली-गलौज तक करते हैं, इसका भी बुरा मानना चाहिए। काफी लोग दिन भर अश्‍लील गाने बजाते हैं। मद्दे मजाक, द्वअर्थी भाषा और दोहों का प्रयोग भी करते हैं। रंगों की जगह कीचड़, पेंट, मोबिल, गोबर आदि का उपयोग करते हैं। इसका भी बुरा मानना चाहिए।

होली खुशियों का पर्व है। भाईचारे और प्रेम का पर्व है। सालों की दुश्‍मनी भुलाकर गले लगने का त्‍योहार है। आपका अपना न्‍यू वेब पोर्टल dainikjharkhand.com आपसे निवेदन करता है कि बुरा माने जानेवाले कदमों को इस महान पर्व से दूर रखें। संयम के साथ खूब मस्‍ती करें, जमकर होली खलें।

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