हरा चारा प्रबंधन से किसानों को दोहरा लाभ : कुलपति
रांची। सामान्य
सूखे चारें को पशु आहार के रूप में देने से पशुओं के स्वास्थ्य और आयु पर प्रतिकूल
असर पड़ता है। पशुओं को गुणवत्ता और पौष्टिकतायुक्त आहार में हरा चारा देने से उसके
वजन और दूध उत्पादन में वृद्धि होती है। किसान अपने खेतों में दीनानाथ घास, नेपियर
घास, ज्वार, बाजरा, मकई, बोदी, बरसीम, लुसर्न और बोदी को उपजा कर सालों भर हरा चारा
का उत्पादन कर सकते हैं। पशु चारे में हरा चारा के प्रयोग से पशु का स्वास्थ्य
बेहतर और उसके उत्पाद की क्वालिटी अच्छी होने से तीस से चालीस प्रतिशत अधिक लाभ
होता है। झारखंड जैसे वर्षा आधारित खेती वाले राज्य में हरा चारा को बढ़ावा देकर पशु
चिकित्सा खर्च में बचत कर सकते हैं। अधिक दूध उत्पादन से 30-40 प्रतिशत मुनाफे में
वृद्धि से दोहरा लाभ का अवसर मिलता है। उक्त बातें बीएयू कुलपति डॉ परविंदर कौशल
ने हरा चारा उत्पादन विषयक पांच दिवसीय मास्टर ट्रेनर्स के तीसरे प्रशिक्षण कार्यकर्
के समापन पर कही। इस अवसर पर उन्होंने सभी मास्टर ट्रेनर्स को सर्टिफिकेट, बिरसा
किसान डायरी और चारा कीट दिया। मौके पर किसानों ने भी अपने विचार और अनुभव साझा
किये।
यह कार्यक्रम
झारखंड ट्राइबल इम्पावरमेंट एंड लाइवलीवूड प्रोजेक्ट (जेटीईअलपी) के सौजन्य से बीएयू
के पशुचिकित्सा कॉलेज द्वारा कराया गयाI इसमें लोहरदगा, साहिबगंज, सराइकेला-
खरसावा और पश्चिम सिंहभूम के 36 किसानों ने भाग लिया। डॉ एके पाण्डेय, डॉ विरेन्द्र कुमार,
डॉ एएन पूरण, डॉ एस कर्मकार, डॉ आरपी मांझी, डॉ स्वाति शिवानी, डॉ योगेन्द्र
प्रसाद और डॉ सुबोध कुमार ने किसानों को ट्रेनिंग दी। समारोह का संचालन ट्रेनिंग
प्रभारी डॉ आलोक कुमार पाण्डेय और धन्यवाद डॉ सुशील प्रसाद ने किया। मौके पर डॉ
विरेन्द्र कुमार, अरुण कुमार गुप्ता भी मौजूद थे।
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