कोयला यूनियनें पहले सहमत, अब आंदोलन पर उतारू
रांची। पहले खदानों के निजी हाथों में सौंपने सहमत थे। वहां
से निकले वाले कोयले को बाजार में बेचने पर भी उन्हें आपत्ति नहीं थी। सरकार के साथ
बातचीत में उसने समझौत पत्र पर हस्ताक्षर भी किए। अब सरकार की अनुमति देने से संगठनों
को इससे खतरा नजर आने लगा है। अब आंदोलन पर उतारू हो गए हैं। चार मार्च को इसकी रणनति
तय करने के लिए बैठक बुलाई है। हालांकि सीटू इसके खिलाफ था। उसके सदस्यों ने 18 फरवरी
2015 को इसके विरोध में दिल्ली में प्रदर्शन भी किया था। सहमति जताने वाले संगठन के
नेताओं में इंटक के राजेंद्र प्रसाद सिंह और एसक्यू जमा, बीएमएस के डॉ बसंत कुमार राय और पीके दत्ता, एटक के
रमेंद्र कुमार और लखनलाल महतो, एचमएस के नाथूलाल पांडेय शामिल
थे। सीटू के डीडी रामानंदन ने हस्ताक्षर नहीं किया।
इन मुद्दों पर बात
केंद्र सरकार ने कोल माइंस (स्पेशल प्रोविजन) बिल-2014 का अध्यादेश
लाया था। इसके विरोध में पांच केंद्रीय कोयला संगठनों ने छह से 10 जनवरी 2015 तक हड़ताल
की घोषणा की थी। संगठनों में सीटू, एटक, बीएमएस, एचएमएस और इंटक शामिल थे। इसके बाद केंद्रीय
कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने श्रमिक नेताओं के सात जनवरी को बैठक बुलाई थी। इसमें तीन
मुद्दों पर बात हुई। इसमें कोल माइंस (स्पेशल प्रोविजन) बिल-2014 अध्यादेश की पुन:
घोषणा के द्वारा निजी कंपनियों को कॉमर्शियल कोल माइनिंग की अनुमति, कोल इंडिया में आगे विनिवेश और कोल इंडिया का किसी प्रकार का पुनर्गठन शामिल
थे।
यूनियनों ने ये कहा
यूनियनें कोयला क्षेत्र में निजी कंपनियों के लिए कोयला ब्लॉक
के ई-ऑक्शन और उन्हें खुले बाजार में बेचने की अनुमति जैसे प्रावधानों के विरोध
में थी। उनका आरोप था कि यह कदम कोल इंडस्ट्री के निजीकरण के सामान है। इससे कोयला
कर्मियों ओर इंडस्ट्री को नुकसान होगा। यूनियनों ने इन प्रावधान को समाप्त करने की
मांग की थी। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए गए 204 कोल ब्लॉक
को कोल इंडिया को देने की मांग रखी थी।
ये तर्क दिया था मंत्री ने
मंत्री ने वार्ता में कहा था कि इस अधिनियम/अध्यादेश का मुख्य
उद्देश्य देश में कोयले की खदानों में कार्यरत कामगारों का संरक्षण हो। खदानें बंद
न होने पाएं। सभी नौकरियां बची रहे। अभी देश में लाखों-करोड़ों रुपये का कोयला विदेश
से आता है। भारत में दुनियां का तीसरा सबसे बड़ा कोल रिजर्व है। कोल इंडिया का उत्पादन
बढ़ नहीं रहा था। कई वर्षों से एक-डेढ़ प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो रही थी। उस परिस्थिति
में कोयले की खदानें चलती रहे, नौकरियां बचे और देश में बिजली
की कटौती नहीं हो। इसके मद्देनजर यह अध्यादेश लाना जरूरी था। मंत्री ने बातचीत में
कहा था कि इस अध्यादेश से कोल इंडिया को किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है। इससे संगठन
के प्रतिनिधि सहमत भी हो गए थे।
अध्यादेश के ये फायदे बताएं थे
उच्च्तम न्यायालय द्वारा आवंटन रद्द करने के बाद अनिश्चितता
को दूर कर कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। कोल इंडिया के हितों पर कोई प्रतिकूल
प्रभाव नहीं पड़ेगा। राज्य और पीएसयू के हितों की रक्षा होगी। बिजली, सीमेंट और स्टील उत्पादन में वृद्धि होगी। आधारभूत संरचना क्षेत्र को बल
मिलेगा, सभी को बिजली मिलेगी और मेक इन इंडिया प्रोग्राम को बढ़ावा
मिलेगा। खदानों की नीलामी से मिलने वाला पैसा कोयला खदान वाले राज्यों को मिलेगा।
झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़
जैसे राज्यों के राजस्व को सुदृढ़ करने में सहायक होगा। प्रस्तावित प्रावधान कोयले
की काला बाजारी को समाप्त कर देगा। कठिनाई झेलने वाली छोटी इकाईयों को आसानी से कोयला
मिलेगा। आयातित कोयले की जगह घरेलू कोयले के प्रयोग से विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को गति मिलेगा और रोजगार के नए अवसर मिलेंगे। बंद पड़े पावर
और स्टील प्रोजेक्ट फिर से चल पड़़ेंगे, बैंक कैपिटल के रास्ते
खुलेंगे और उनके एनपीए में कमी आएगी।

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