लखपति बना देगी खरबूज की खेती की ये तकनीक
रांची। राजधानी के कांके स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय का कृषि अभियंत्रण विभाग प्लास्टिक लो टनल एवं मल्च विधि से खरबूज की खेती पर शोध कर रहा है। करीब 10 डिसमील जमीन में कराये जा रहे इस शोध के अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं। भारत सरकार की बागवानी में प्लास्टिक के प्रयोग पर राष्ट्रीय समिति योजना के तहत कृषि पद्धति विकास केंद्र योजना के अधीन यह शोध हो रहा है। इससे पता चला है कि इस तकनीक से खरबूज की खेती में प्रति एकड़ 50 हजार रुपये लागत पड़ती है। प्रति एकड़ 6 से 8 टन उपज होती है। शुद्ध लाभ 1 से 1.5 लाख रुपये प्रति एकड़ मिल सकता हैै।
योजना प्रभारी डॉ मिन्टू जॉब ने बताया कि सामान्य तकनीक से खरबूज की खेती में 3 से 4 टन प्रति एकड़ उपज मिलती है। इस तकनीक से खेती में 6 से 8 टन प्रति एकड़ तक उपज संभव है। सामान्य तकनीक की खेती की तुलना में दोगुना लाभ किसान ले सकते हैं। प्लास्टिक लो टनल का व्यवहार हरितगृह जैसा प्रभाव देता है। जाड़े में बाहरी तापक्रम की अपेक्षा 5 डिग्री अधिक तापक्रम मिलने के कारण नर्सरी तैयार करने की जरूरत नहीं पड़ती। खरबूज बीज की सीधी बुआई दिसंबर के दूसरे पखवाड़े से की जा सकती है। मल्च से खेतों में बिल्कुल घास नहीं होता। मिट्टी तापक्रम नियंत्रित रहता है। नमी बरकरार रहती है। इसके कारण 20 प्रतिशत तक कम सिंचाई की जरूरत होती है।
झारखंड में खरबूज की बॉबी किस्म काफी प्रचलित है। इसके अलावा माधुरी किस्म की भी खेती की जाती है। ये दोनों संकर किस्में है। खरबूज के फल 90 से 105 दिन में तैयार हो जाते हैं। हल्का पीलापन या उजलापन आने पर फल को तोड़ा जाता है। अन्य किस्म की तुलना में बॉबी किस्म में मीठापन अधिक होता है। फल को घर के सामान्य तापकर्म में भी दिनों तक उसी गुणवत्ता के साथ सुरक्षित रखा जा सकता है।
इन किसानों ने देखा
खरबूज की खेती के प्रत्यक्षण को अब तक रांची और उसके आस-पास के जिले के करीब 800 किसानों ने देखा है। हाल ही में रिलायंस प्राइवेट लिमिटेड से जुड़े पिठोरिया और इसके आस-पास के गांव के 35 किसानों को योजना के अधीन प्रशिक्षण भी दिया गया है। उत्पादित खरबूज का स्थानीय खुदरा बाजार मूल्य 50 से 60 रुपये प्रति किलो है। बीएयू कुलपति डॉ परविन्दर कौशल ने इस तकनीक से खरबूज की खेती को किसानों की आय दोगुणी करने का सशक्त विकल्प बताया। उन्होने इस तकनीक के व्यापक प्रचार. प्रसार तथा किसानों को अभी से प्रशिक्षण दिए जाने पर बल दिया, ताकि राज्य के किसान इस तकनीक का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सके। विशेष जानकारी डॉ मिंटू जॉब के मोबाइल संख्या 8696658183 से प्राप्त किया जा सकता है।
योजना प्रभारी डॉ मिन्टू जॉब ने बताया कि सामान्य तकनीक से खरबूज की खेती में 3 से 4 टन प्रति एकड़ उपज मिलती है। इस तकनीक से खेती में 6 से 8 टन प्रति एकड़ तक उपज संभव है। सामान्य तकनीक की खेती की तुलना में दोगुना लाभ किसान ले सकते हैं। प्लास्टिक लो टनल का व्यवहार हरितगृह जैसा प्रभाव देता है। जाड़े में बाहरी तापक्रम की अपेक्षा 5 डिग्री अधिक तापक्रम मिलने के कारण नर्सरी तैयार करने की जरूरत नहीं पड़ती। खरबूज बीज की सीधी बुआई दिसंबर के दूसरे पखवाड़े से की जा सकती है। मल्च से खेतों में बिल्कुल घास नहीं होता। मिट्टी तापक्रम नियंत्रित रहता है। नमी बरकरार रहती है। इसके कारण 20 प्रतिशत तक कम सिंचाई की जरूरत होती है।
झारखंड में खरबूज की बॉबी किस्म काफी प्रचलित है। इसके अलावा माधुरी किस्म की भी खेती की जाती है। ये दोनों संकर किस्में है। खरबूज के फल 90 से 105 दिन में तैयार हो जाते हैं। हल्का पीलापन या उजलापन आने पर फल को तोड़ा जाता है। अन्य किस्म की तुलना में बॉबी किस्म में मीठापन अधिक होता है। फल को घर के सामान्य तापकर्म में भी दिनों तक उसी गुणवत्ता के साथ सुरक्षित रखा जा सकता है।
इन किसानों ने देखा
खरबूज की खेती के प्रत्यक्षण को अब तक रांची और उसके आस-पास के जिले के करीब 800 किसानों ने देखा है। हाल ही में रिलायंस प्राइवेट लिमिटेड से जुड़े पिठोरिया और इसके आस-पास के गांव के 35 किसानों को योजना के अधीन प्रशिक्षण भी दिया गया है। उत्पादित खरबूज का स्थानीय खुदरा बाजार मूल्य 50 से 60 रुपये प्रति किलो है। बीएयू कुलपति डॉ परविन्दर कौशल ने इस तकनीक से खरबूज की खेती को किसानों की आय दोगुणी करने का सशक्त विकल्प बताया। उन्होने इस तकनीक के व्यापक प्रचार. प्रसार तथा किसानों को अभी से प्रशिक्षण दिए जाने पर बल दिया, ताकि राज्य के किसान इस तकनीक का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सके। विशेष जानकारी डॉ मिंटू जॉब के मोबाइल संख्या 8696658183 से प्राप्त किया जा सकता है।
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