गुरु भक्ति और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है: स्वामी सत्यांनद
उन्होंने कहा कि एक भक्त पटना आश्रम में आते थे। वृद्ध थे और रामायण की अच्छी जानकारी थी। लगभग चार-पांच साल तक आने के बाद भी वे मंत्र दीक्षा नहीं ले रहे थे। उन्हें शिकायत भी थी कि उनके मित्र और सहयोगी उन्हें दीक्षा लेने पर जोर दे रहे हैं।लगभग पांच साल ब्रम्ह विद्यालय और आश्रम के पटना और मुख्य स्थान तक जाने के बाद उन्होंने अपनी शंका जाहिर की कि गुरुदेव हमने देवराहा बाबा से दीक्षा ली है तब क्या ब्रम्ह विद्यायल की दीक्षा ली जा सकती है। लोग कहते हैं एक ही गुरु किया जाना चाहिए। यह सच है कि एक गुरु होना चाहिए। लेकिन गुरु तत्व पूरे संसार में एक ही है। आवश्यकता है आप जीवन में इसे अपना लें। उन्होंने मंत्र दीक्षा भी ली और सन्यासी भी बन गये। गुरु पद है उसे स्वीकार्य किया जाना चाहिए। वे अति विनम्र और मधुर बोलने वाले थे। गुरु के प्रति आपका प्रेम और समर्पण आपको बड़े ही शानदार ढ़ग से लौटता है। इस का साक्षात उदाहरण हमारे दरबार में एक नहीं अनेको हैं। जीव के उद्धार के लिए परम पूज्यनीय स्वामी शिवधर्मानंद जी ने जो वाणी और व्यवहार अपनाया वर्तमान समय में वह ज्ञान और भक्ति की संपूर्ण उंचाई का सर्वोच्च उदाहरण है। जब गढ़वा घाट काशी बनारस के स्वामी जी ने स्वामी शिवधर्मानंद जी को गंगा पार भेजा तो एक भी व्यक्ति सहयोग के लिए नहीं था। उन्हें एक गांव में भेज दिया। आज वहीं गांव पूरे देश में तत्व ज्ञान के प्रचार प्रसार का केन्द्र बना। स्वामी जी ने भक्ति के क्षेत्र में एक बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया। स्वामी रामकृष्ण परमहंस की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि काली मां के प्रति उनका जो प्रेम था उनका भाव था जिसमें रात-दिन डूबे रहते थे। स्वामी तोतेपूरे ने उन्हें ज्ञान का अहसास करा दिया। स्वामी रामकृष्ण उस परमतत्व को प्राप्त कर गुरु पद को सुशोभित किया।
कार्यक्रम में भक्तों ने मंत्र दीक्षा प्राप्त किया। स्वामी जी सुबह दस बजे से और शाम छह बजे से भक्तों के साथ सतसंग में तत्व ज्ञान की विवेचना करते हैं।
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