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भक्ति से भाव बदलता है : स्वामी सत्यानंद


रांची। भक्ति जीवन जीने का ढंग है। चाहे आप किसी भी काम से जुडे़ं होआप धनी हैं या निर्धन है, ज्ञानी है या अज्ञानी। इससे भक्ति में कोई फर्क नहीं पड़ता है। बसारगढ़ तुपुदाना स्थित ब्रम्हा विद्यालय एवं आश्रम में अपने 15 दिनी प्रवास के 13 वें दिन शनिवार को सत्‍संग के क्रम में स्वामी सत्यानंद परमहंस ने उक्‍त बातें कही। भक्तों को कलियुग केवल नाम आधारा का विश्लेषण करते हुये बताया कि चारों युग और चारों वेद में नाम ही आधार है। रामचरितमानस में स्वामी तुलसीदास ने एक आधार नाम गुण गाणा को भक्ति का सूत्र बताया है। तुलसीदास जी ने राम की तुलना सर्व व्यापक राम से की है। तुलसी कहते हैं कि मेरा राम दशरथी राम से बड़ा है। राम तत्व लकड़ी में प्रकट अग्नि की तरह है। नाम में जो प्रगट है, वही सर्व व्यापक है। उसी को हम ग्रहण कर सकते हैं। भक्ति के बिना जीवन और भक्ति के संग जीवन का सबसे बड़ा उदाहरण भारत में ही देखने को मिलता है।

उन्होंने स्त्रियों के समर्पण को भक्ति का मॉडल बताया। कहा कि एक स्त्री बचपन में पिता, युवावस्था में पति और वृद्धावस्था में बेटे के नाम से जानी जाती है। वह नाम ग्रहण करती है। उसका अपना कोई वजूद नहीं होता उसकी इच्छा भी इस ओर नहीं जाती। आज समय बदला भी है तो मूल रूप यही है कि स्त्री का कुछ नहीं है, लेकिन सब कुछ उसका है। पहले पिता का, फिर पति का और बेटे का खेत, मकान को ही अपना बताती हुई पूर्ण संतुष्ट जीवन जीती है। ऐसा ही समर्पण भगवान राम ने गुरू वशिष्ठ के लिए किया था। जो सर्वव्यापक राम को पकड़ेगा, वह रामधनी हो जाएगा। राम का नाम ह्दय में बसे न सड़े, न गले, न पुराना होय। अर्जुन से बड़ा धनुर्धर कोई नहीं था। लेकिन वे भगवान कृष्ण को सब कुछ समर्पित कर चुके थे। महाभारत की लड़ाई में कृष्ण की हर बात अर्जुन ने स्वीकार की। अर्जुन कृष्ण पर निर्भर हो गये। आपके अदंर की शक्ति को प्रकट कर देता है। यह शक्ति सभी मनुष्य में है, लेकिन प्रकट होने और न होने की बात होती है। गुरू प्रकट कराता है। वशिष्ठ ने राम में प्रकट करा दिया।

एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक व्यक्ति ने स्वामी शिवधर्मानंद जी से पूछा कि आपके ब्रम्हा विद्यालय एवं आश्रम में मंत्र दीक्षा के बाद सिर्फ गुरू की उपासना पर बल दिया जाता है। कोई भगवान ही नहीं है। लेकिन मैं भगवान शंकर की पूजा करता हूं। वे नाराज हो गये तब मैं क्या करूंगा। स्वामी जी ने जबाव दिया कि भगवान शंकर भी गुरू की ही पूजा करते है, ऐसे में वे क्या बोंलेंगे। रामत्व की पूजा तो राम और शिव सभी करते हैं। साधु कौन? ज्ञान का साधु। खान-पान और पहनने ओढ़ने वाला साधु नहीं। विभीषण ने भाई को छोड़ा, भरत ने मां का त्याग कर दिया किसके लिये? यह समर्पण राम के प्रति था। राम ने पूरे जीवन कैकैयी का सबसे ज्यादा ख्याल रखा। प्रथम राम भेंटउ कैकेयी। परिणाम हुआ कि कैकयी को बदलना पड़ा। ऐसा ही समर्पण ब्रम्हा विद्यालय और आश्रम में महात्मा व्यासानंद जी ने किया है। भरत से भी कठिन स्थितियों में गुरू भक्ति को ही पहला स्थान दिया। भक्ति भाव बदल देती है, सहिष्णुता पैदा करती है। दुनिया का संबंध जीव की तरक्की के लिए होता है। रामत्व के कारण ही राम सार्वजनिक जीवन में रामचन्द्र कहलाये। जिसने अपने आप को आत्म सात कर लिया, रामत्व से अपने को जोड़ लिया उसका अहंकार समाप्त हो जाता है। अहंकार रहित जीवन का सर्वोत्तम उदाहरण राम हैं।

रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद जब देवता उनकी जय-जय कार कर रहे थे, तब राम ने कहा था गुरू वशिष्ठ पूज्य हमारे इनकी कृपा दनुज वन मारे। राम ने जो कुछ किया सब गुरू को समर्पित कर दिया। धन और विद्या से युक्त या इससे रहित कोई भी अहंकारी हो सकता है। इस स्वभाव का इससे कोई लेना देना नहीं है। हमारे महात्मा और सन्याशी से कहा जाता है कि नारी के गुण से भक्ति करों इससे सहज और कुछ नहीं है नामत्व के प्राप्ति के लिये। जिस संयुक्त परिवार के कारण भारत का पूरे दुनिया में नाम है हमारे लाखों लोग अमेरिका में अपने व्यवहार और भाव के कारण श्रेष्ठ लोगों में गिनती पा रहे हैं। वह हमारे संयुक्त परिवार के कारण है। युवाओं में सहिष्णुता और सहयोग की भावना इसी से पैदा होती है। ज्ञान से अधिक व्यवहार से जीवन में उंचाई मिलती है। अमेरिका में शोध हुआ है जिसमें भारतीय संयुक्त परिवार को जीने का सर्वोत्कृष्ट मॉडल माना गया है। ऐसी उदार और बेहतर परिवार का मॉडल यूरोप सहित किसी देश में नहीं है। आज रांची आश्रम पर सतसंग का अंतिम दिन है। स्वामी जी कल गया आश्रम के लिए प्रस्थान करेंगे। जहां से पटना और फिर छपरा आश्रम जायेंगे।

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