राम की भक्ति अनुपम : स्वामी सत्यानंद
रांची।
राम कथा के व्यवाहारिक पक्ष की चर्चा ज्यादा होती है, जबकि राम के व्यवाहारिक पक्ष में पूर्णता के पीछे जो
भक्ति है उसे समझने की आवश्यकता है। उक्त बातें रांची के बसारगढ़ तुपुदाना स्थित
ब्रम्ह विद्यालय एवं आश्रम में अपने 15 दिवसीय प्रवास के 13वें दिन स्वामी सत्यानंद
परमहंस ने कही। उन्होंने कहा कि राम को समझने के लिए राम की गुरु भक्ति को समझने
की जरूरत है। राम के जन्म के पहले से ही गुरु वशिष्ठ ने भक्ति की भूमिका तैयार की।
राजा दशरथ की संतान के लिए किये गये उनके प्रयास से लेकर राम की भक्ति को उंचाई तक
ले जाने की बात भारतीय समाज को प्रेरणा देती है। राम ने जीवन की हर भूमिका का निर्वाह
सही ढंग से किया। उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण, भरत और
शत्रुध्न की देखभाल से लेकर अयोध्या के राजधर्म का निर्वाह भी इस प्रकार किया, जिसे आज भी समाज से सबसे अधिक अनुकरणीय माना जाता है।
उन्होंने कहा कि जब
विश्वमित्र उन्हें लेने आये तब गुरु वशिष्ठ ने राम से कहा कि विश्वमित्र ही आपके
गुरु तुल्य हैं। आप इनकी सभी बातों का पालन करेंगे। जबकि राम बक्सर में यज्ञ की
रक्षा के लिए ही गये थे, लेकिन गुरू के रुप में विश्वमित्र
ने उनके अहिल्या का उद्धार भी कराया। जनकपुर में धनुष यज्ञ में भी ले गये। यही
नहीं, धनुष यज्ञ का परिणाम विवाह था। राम पूर्ण गुरू को
समर्पित थे। सार्मथ्यवान और भक्ति की उच्चतम शिखर को प्राप्त करने के लिए इस दशरथ नंदन
राम के रूप में भारत की भूमि पर अवतरित हुए थे। राम के वन गमन के क्रम में भी जो
घटनायें हैं, उन सभी में गुरू वशिष्ठ की भूमिका है। जब
अयोध्या के लोगों ने राम को वन न जाने के लिए गुहार लगायी तो वशिष्ठ जी ने ही लोगों
को समझाया कि राम को वन जाने दें। वन गमन के बाद चित्रकूट में रहने और फिर अगस्त
मुनि से आगे की घटनाओं के बारे में भविष्यवाणी सुनने के बाद राम ने जो कुछ किया वह
जीवन का व्यवहारिक पक्ष था। राम और सीता को अगस्त मुनि ने बताया कि राम के माध्यम
से रावण का वध होना लिखा है।
राम कथा से संबंधित एक भक्त ने यह जानना चाहा कि सीता
जब एक हाथ से धनुष उठा लेती थी, जो रावण से उठा नहीं तो रावण
सीता को कैसे उठा ले गया? इस प्रश्न के जबाव में स्वामी जी
ने कहा कि सीता परा शक्ति थी। उन्हें सब कुछ मालूम था। लक्षमण को मालूम नहीं था।
सीता हरण में कई बातें है, जैसे सीता लक्षमण रेखा से बाहर
क्यों गयी? जटायु से जब रावण से युद्ध कर रहे थे, उस समय सीता भाग सकती थी। लेकिन सीता के माध्यम से रावण का वध लिखा था।
सीता जैसे लंका पहुंची रावण की तमाम सिद्धी समाप्त हो गयी। रावण बैचेन होकर गुरू
शुक्राचार्य के पास गया। शुक्राचार्य ने कहा कि सीता परा शक्ति है। तुम्हारी पूरी
शक्ति सीता के सामने क्षीण हो गयी है। रावण असहाय हो गया था। राम व्यवहारिक थे। एक
सहज आदमी के रूप में उन्होंने अभिनय किया। जबकि कृष्ण यर्थातवादी थे। राम नाम के
बल पर राजनीतिक दल सत्ता भी हासिल कर लेते हैं। राम और कृष्ण ही देश के सामाजिक,
धार्मिक मूल्यों के आधार हैं।

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