स्थाई और दीर्घकालीन उर्वरक प्रबंधन पर ध्यान देना जरुरी : डॉ सरकार
रांची। बिरसा कृषि
विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग में वर्ष 1952 से स्थाई खाद प्रबंधन प्रायोगिक
प्रक्षेत्र और वर्ष 1972 से दीर्घकालीन उर्वरक प्रबंधन प्रायोगिक प्रक्षेत्र पर शोध हो रहा है।
कृषि संकाय के पूर्व अधिष्ठाता डॉ एके सरकार ने शनिवार को इन प्रायोगिक प्रक्षेत्र
का भ्रमण किया। परियोजना प्रभारी डॉ प्रभाकर महापात्रा को तकनीकी मार्गदर्शन दिया।
डॉ सरकार ने झारखण्ड
के कृषि परिवेश में इन दोनों प्रायोगिकी प्रक्षेत्रों से प्राप्त शोध तकनीकों का
सुदूर ग्रामीण स्तर तक प्रचार-प्रसार पर बल दिया। बताया कि झारखण्ड की अम्लीय मिट्टी
में नाइट्रोजन, फ़ास्फ़रोस और पोटाश के साथ-साथ किसान भाईयों को जैविक खाद एवं चुना
के प्रयोग पर ध्यान देना चाहिए। किसानों द्वारा यूरिया और डीएपी उर्वरक मात्र के
प्रयोग से राज्य की भूमि में पोटाश की कमी दिखने लगी है। किसानों को यूरिया, डीएपी
के साथ-साथ पोटाश उर्वरक का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
डॉ सराकर ने बताया
कि शुद्ध पोषक तत्वों में सब्जी, दलहन और तेलहनी फसलों में बोरोन की कमी देखी जा
रही। बोरोक्स को बोआई के समय या फसल पर छिड़काव द्वारा बोरोन की कमी दूर की जा सकती
है। राज्य की निचली भूमि पर धान की खेती की जाती है। सूक्ष्म पोषक तत्व जिंक की कमी
पाई जा रही है,
जिसे जिंक सालफेट के
छिड़काव से दूर किया जा सकता है।
डॉ सरकार ने कहा कि
किसानों को यह सलाह दी जानी चाहिए कि सफल और टिकाऊ खेती के लिए वे विभिन्न
संस्थाओं द्वारा जारी किये गये स्वायल हेल्थ कार्ड के आधार पर ही पोषक तत्व उपादान
(रासायनिक उर्वरक, जैविक खाद, जैव उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्व तथा चुना अथवा
डोलोमाईट) का प्रयोग करे।

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