सूकरपालन जनजातियों का परंपरागत व्यवसाय : डॉ कौशल
रांची। सूकरपालन स्थानीय जनजातियों और कमजोर वर्गों
के लिए परंपरागत व्यवसाय है। उन्नत नस्लों और प्रबंधन तकनीक की जानकारी के आभाव
में सूकरपलकों को सही लाभ नही मिल पाता है। विश्वविद्यालय से विकसित ‘झारसुक’ प्रजाति का पालन कर चार गुना अधिक लाभ
प्राप्त किया जा सकता है। यह कृषि और पशुपालन व्यवसाय की अपेक्षा सबसे अधिक
लाभकारी व्यवसाय बन सकता है। उक्त बातें बिरसा कृषि विवि के कुलपति डॉ परविंदर
कौशल ने कही। वे सूकर एवं बकरी पालन पर विवि में मंगलवार से आयोजित पांच दिवसीय
प्रशिक्षण कार्यक्रम का उदघाटन कर रहे थे।
प्रशिक्षण समन्वयक डॉ आलोक कुमार पांडेय
ने बताया कि इस प्रशिक्षण में किसानों को सूकर पालन और बकरी पालन से संबंधित
प्रबंधन, प्रायोगिक कार्य की जानकारी दी जाएगी। ब्राम्बे, बुकरू और होचर गांव के
सफल सूकरपालकों के गांवों का भ्रमण कर प्रत्यक्ष अनुभव और तकनीकी जानकारी ले सकेंगे।
यह कार्यक्रम पशुचिकित्सा संकाय के पशुपालन प्रसार शिक्षा विभाग और सरायकेला के
आत्मा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया है। इसमें सरायकेला-खारसवा के छोटा
जामदुडा, बूरीडीह, प्रधानडीह, रामपुर और संथाल गांव के सूकर पालन में इच्छुक 25 प्रतिभागी भाग ले रहे हैं।

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