जनजातीय किसानों ने मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन को जाना
लोहरदगा। अनुसंधान निदेशालय द्वारा संचालित अल्पकालीन फसल उपज लक्ष्य विषयक आईसीएआर की जनजातीय उपयोजना के अधीन रांची जिले के अनगड़ा प्रखंड और लोहरदगा जिले के कुडु प्रखंड में चार प्रशिक्षण कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इन प्रशिक्षणों में जनजातीय किसानों को मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन विषय के अंतर्गत विभिन्न तकनीकों की जानकारी दी गई। इस दौरान फसल आधारित पोषक तत्व प्रबंधन, फसलों में संतुलित उर्वरक प्रबंधन एवं फसलों की गुणवत्ता, टिकाऊ फसल उत्पादन में म्ृदा स्वास्थ्य प्रबंधन का महत्व, मिट्टी की जांच की आवश्यकता, विभिन्न फसलों के कीट एवं रोग प्रबंधन के बारे में बताया गया। मृदा वैज्ञानिक डॉ बीके अग्रवाल ने बताया कि किसानों के खेत की मिट्टी की जांच में अम्लीय समस्या से ग्रस्त जमीन पाई गई है। यह कम फसल उपज का मुख्य कारण है। यहां की जमीन में फास्फोरस और पोटाश की कमी देखी जा रही हैं।
तेलहनी फसलों में आवश्यक सल्फर और विशेष सब्जी फसलों के लिए बोरोन की उपलब्धता में कमी देखी गई है। किसानों को फसल लेने से पहले खेतों की मिट्टी की जांच की जरूरत है। किसानों को 3-4 साल के अंतराल में अपने खेतों की मिट्टी की जांच कराकर ही खेती करनी चाहिए। कार्यक्रम में परियोजना प्रभारी डॉ एसबी कुमार ने झारखंड की जमीन में सफल खेती के लिए फसल बुआई से पहले बूझा चूना के साथ-साथ गोबर खाद और जीवाणु एवं जैविक खाद का प्रयोग करने की जानकारी दी। पौधा रोग वैज्ञानिक डॉ एमके बर्णवाल ने समेकित कीट नाशीजीव प्रबंधन के तकनीकों से अवगत कराया। प्रशिक्षणों को बीएयू के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग और मॉस संस्था के सहयोग से आयोजित किया गया। मॉस संस्थापक डॉ विजय भरत ने भी किसानों को सफल खेती के महत्वपूर्ण टिप्स दिए। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में रांची और लोहरदगा जिले से 17 गांवों के करीब 210 जनजातीय महिला और पुरूष कृषकों ने हिस्सा लिया।
तेलहनी फसलों में आवश्यक सल्फर और विशेष सब्जी फसलों के लिए बोरोन की उपलब्धता में कमी देखी गई है। किसानों को फसल लेने से पहले खेतों की मिट्टी की जांच की जरूरत है। किसानों को 3-4 साल के अंतराल में अपने खेतों की मिट्टी की जांच कराकर ही खेती करनी चाहिए। कार्यक्रम में परियोजना प्रभारी डॉ एसबी कुमार ने झारखंड की जमीन में सफल खेती के लिए फसल बुआई से पहले बूझा चूना के साथ-साथ गोबर खाद और जीवाणु एवं जैविक खाद का प्रयोग करने की जानकारी दी। पौधा रोग वैज्ञानिक डॉ एमके बर्णवाल ने समेकित कीट नाशीजीव प्रबंधन के तकनीकों से अवगत कराया। प्रशिक्षणों को बीएयू के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग और मॉस संस्था के सहयोग से आयोजित किया गया। मॉस संस्थापक डॉ विजय भरत ने भी किसानों को सफल खेती के महत्वपूर्ण टिप्स दिए। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में रांची और लोहरदगा जिले से 17 गांवों के करीब 210 जनजातीय महिला और पुरूष कृषकों ने हिस्सा लिया।
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