ईश्वर दुख में सदैव अपनी संतान के साथ रहते हैं : उमेश जानी
रांची। घर के माता पिता भी परमात्मा तुल्य
है। हम माता के मंदिर में नयी साड़ी और चुनरी खूब चढ़ाते है, परंतु घर की मां फटी साड़ी में घूमे तो भगवान प्रसन्न
नहीं होंगे। उक्त बातें भागवत कथा के दूसरे दिन भिलाई से आए भागवत वक्ता उमेश जानी
ने कही। वे राजधानी के लालपुर चौक स्थित पटेल समाज भवन में चल रहे भागवत कथा में बोल
रहे थे।
श्री जानी ने कहा कि माता-पिता पूर्ण जीवन
अपनी संतानों के चेहरे पर हंसी देखने के लिए दुःख उठाते है। वही संतान बड़ी होकर
उन्हें रुलाए तो उस घर का सारा पुण्य माता पिता के आंसुओं के साथ बह जाता है। नारद
जी की पूर्वजन्म कि कथा पर प्रकाश डालते हुए श्री उमेश ने बताया कि साधारण परिवार
में जन्मे नारद ने माता और गुरु की सेवा की। उनके बताए मार्ग पर चले। वासुदेव
गायत्री मंत्र का जाप किये तब दूसरे जन्म में नारद बनते हैं। कथा से यह बात समझ
में आती है कि प्रभु के मन में अमीर-गरीब, ऊंच-नीच का भेद नहीं है।
माता कुंती कथा द्वारा मालूम चलता है कि
ईश्वर भले सुख में नहीं आते पर दुःख में सदैव हमारे साथ रहते हैं। उन्होंने ईश्वर
की तुलना मां से करते हुए बताया कि यदि बच्चे की तबियत बिगड़ जाये और उसे अस्पताल
में दाखिल कराना तो मां अस्पताल में अपने बच्चे के पास ही मिलेगी। ईश्वर भी हमारे
दुःख के समय में कहीं नहीं जाते,
हमारे साथ हमारे पास ही रहते है।
ध्रुव चरित्र कि कथा के माध्यम से उन्होंने ने
बताया कि ईश्वर अपने भक्त के आधीन हैं। बालक ध्रुव ने वन में भक्ति कर याद किया तो
भगवान को ही आना पड़ा। भक्त तो वह चुम्बक है, जिससे अपने आप
प्रभु उनकी और चले आते हैं। इस अवसर पर ध्रुव चरित्र की आकर्षक झांकी निकाली गई। ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय की धुन पर सभी श्रोतागण झूम उठे। नौ अप्रैल को नरसिंह अवतार
की झांकी निकाली जाएगी।
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