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चार प्रकार के होते हैं भक्‍त : उमेश भाई जानी


रांची। मनुष्य जीवन क्षण भंगुर है। पानी के बुलबुले जिस तरह बनते है और फिर नष्ट हो जाते हैं। पानी का घड़ा भरो और पुनः शाम तक समाप्त हो जाता है, ठीक उसी तरह हमारा आयुष्य भी कब समाप्त हो जाएगा, यह जानना असंभव है। उक्‍त बातें भिलाई से आए वक्‍ता उमेश भाई जानी ने लालपुर चौक स्थित पटेल समाज भवन में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कही।

श्री जानी ने कहा कि एक मानव को दूसरे मानव में यदि परमात्मा का दर्शन हो तो काम बहुत आसान हो जाये। हालांकि ताज्जुब होता कि पत्थर की मूर्ति में हमें भगवान दिखते है, परंतु घर के माता पिता में भगवान नहीं दिखते। उन्‍होंने कहा कि चार प्रकार के भक्त होते है। असली, नकली, फसली और दखली। असली भक्त नित्य कही पर भी सत्संग कर लेता है और किसी के साथ द्वेष भी नहीं रखता। नकली भक्त दिखावे के लिए करता है। फसली भक्त जब मन हो तब करता है। यह तीनों भक्त भगवान को प्रिय है। पर चौथे प्रकार का भक्त दखली जो स्वयं तो न तो भजन या भक्ति करता है ओर दूसरों की साधना में रुकावट करता है। इस प्रकार के दखली भक्तों को परमात्मा भी पसंद नहीं करते।
श्री जानी ने कहा कि जिस घर में भजन और भोजन परिवार वाले सयुंक्त रूप से करते है, ईश्वर वही रहते हैं। जहां प्रेम है, वहां परमात्मा है। नरसिंह अवतार के प्रसंग में उमेश भाई ने बताया कि निष्काम भक्ति श्रेष्ठ है। मांगो तो जितना मांगते है, उतना ही मिलता है, परंतु न मांगो तो बहुत कुछ मिलने की संभावना रहती है। झांकी लीला में स्तम्भ के अंदर से नरसिंह प्रभु प्रगट हुए और हिरण्यकश्यप का वध किया। सभी भक्तजनों ने श्री नरसिंह और भक्त प्रह्लाद पर पुष्प वृष्टि की। भक्तजनों ने सुंदर रास गरबा और नृत्य किया। चौहान परिवार ने प्रसाद वितरण किया।

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