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पानी और वाणी का सदुपयोग करे : उमेश भाई जानी


रांची। राजधानी के लालपुर चौक स्थित पटेल समाज भवन में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन कथा वाचक उमेश भाई जानी ने कहा कि कथा दर्पण जैसी है। कथा भी जीवन में हमारी वास्तविक मन स्थिति का ज्ञान कराता है। कथा में आने से मालूम पड़ता है कि मैं राम जैसा कि रावण जैसा। सुर्पणखा जैसी कि सीता जैसी।
श्री कृष्ण रुक्मणि का महत्व बताते हुए कहा कि लक्ष्मी के पति तो नारायण की हैं। शिशुपाल जैसे बनने जाते हैं, तब लक्ष्मी लात मारती है। अर्थात हम सभी लक्ष्मी के मुनीम और सेवक हैं, मालिक बनने का प्रयास नहीं करे। अपनी संतान का विवाह पात्रता देखकर करें न कि पैसे ले दे कर। दहेज प्रथा सामाजिक अपराध तो है ही पर कानूनी अपराध भी है।
श्री जानी ने कहा कि एक सज्जन और सपूत भक्त परिवार में हो जाये तो वह पूरे परिवार की रक्षा करता है। जैसे विभीषण रावण के साथ थे, तब रावण का हित था। उसने लात मारकर घर से निकाला फिर रावण की उल्टी गिनती शुरू हो गई। पानी और वाणी का सदुपयोग करना चाहिए। एक पिता कभी अपनी संतान का अहित नहीं चाहता। ऐसे में श्री हरि तो जगत पिता हैं। यदि हमें धनवान बनाया तो भी कृपा की है और निर्धन बनाया तो भी कृपा ही की है। दूसरे के दुःख को देखकर दुखी होने सरल है, परंतु दूसरे का सुख देखकर इर्ष्या न करना वैष्णवता की निशानी है।
श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता पानी और दूध जैसी थी। एक दूसरे में मिलाओ घुल जाती है। आजकल की मित्रता स्वार्थ वाली हो गई है जैसे पानी और तेल जैसी। जीवित अवस्था में परीक्षित ने कथा सुनी और उसका कल्याण हुआ। व्यासपीठ से उमेश भाई ने निवेदन किया कि जीवित अवस्था में बने उतना सत्कर्म कर लें। अंग दान, देह दान और नेत्र दान के लिये भी प्रेरित किया।

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