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राम-कृष्ण भी विपरीत स्थितियों में जियें : स्वामी सत्यानंद परमहंस


रांची। मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं है। असाधारण कार्य करने वाले मुनष्य सदैव विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करके मुकाम हासिल करते हैं। बसारगढ़ तुपुदाना स्थित ब्रम्ह विद्यालय एवं आश्रम में अपने 15 दिनी प्रवास के 12वें दिन सतसंग के क्रम में गुरुवार को स्वामी सत्यानंदजी परमहंस ने उक्‍त बातें कही। उन्‍होंने कहा कि परिस्थितियों का बहाना बनाकर कोई स्थान नहीं बना सकता है। रोजी-रोटी के लिए संघर्ष करते हैं, लेकिन भक्ति ज्ञान के लिए नहीं करते। अगर चाह हो जाये कि किसी भी कीमत पर भक्ति करनी है, तो कोई रोक नहीं सकता है। उन्होंने कहा कि कृष्ण जन्म के पूर्व से विपरीत स्थितियों से घिरे रहे। जन्म के बाद माता-पिता से अलग होना पड़ा। कंस और जरासंध के कारण मथुरा छोड़कर द्धारि‍का जाना पड़ा। कई बार उन्हें जान से मारने का प्रयास किया गया। उन्हें रणछोड़ कहा गया। वहां भी कौरव-पांडव के युद्ध में पड़ें। क्या इससे बड़ा कोई विपरीत स्थितियों का उदाहरण हो सकता है। जो रास्ता जानते हैं, उससे कोई लाभ नहीं होता है। रास्ता पर चलने वालों की पहचान बनती है। गांव में कई निर्धन परिवार के युवा ट्यूशन पढ़ाकर या कोई पार्ट टाइम काम करके पढ़ाई करते हैं उंची मुकाम हासिल करते हैं। वहीं कई संपन्न परिवार के युवा उस अनुसार मुकाम हासिल नहीं कर पाते हैं। परिस्थिति की बात करना एक बहाना मात्र है। कुछ घास-फूस कुछ पौधों को दबा देते हैं, लेकिन सभी पौधों को दबाने में वे सफल नहीं हो पाते हैं। आपकी लगन और लालसा कितनी है इस पर आपकी सफलता तय होती है।

धर्म,  अर्थ, काम,  मोक्ष में दुनियावी व्यक्ति फंसा होता है। गुरु दाता के रूप में देने के लिए आपकी हर कठिनाई सुनता है। लेकिन भक्ति सीखी जाती है। भगवान राम का उदाहरण देते हुए उन्होंने समझाया कि गुरू वशिष्ठ ने राम को विश्वमित्र के साथ पूर्ण प्रशिक्षण के लिए भेजा। आज से पांच हजार साल पहले बक्सर गंगा पार तक रावण का साम्राज्य था, जहां उसकी अंतिम चौकी थी। ताडि़का,  मारीच और सुभाउ उस चौकी पर तैनात थे। गंगा इस पार मिथिला और कौशल राज्य थे। गुरु विश्वमित्र ने राम से कहा कि ताडि़का का वध करो। राम ने मना किया। नारी का बध नहीं हो सकता।ले किन विश्वमित्र ने समझाया। अधर्म में नारी हो तो उसका बध संभव है। राम को पूरा प्रशिक्षित करने के उदेश्य से ही भेजा गया था। राम के विश्वमित्र के साथ वन गमन में उनका अहिल्या का उद्धार, धनुष भंग जैसी हर घटना में एक सीखने का अवसर था। पूरे प्रकरण में राम का सिखना ही उन्हें संपूर्ण बना देता है। यही कारण था कि लक्षमण, भरत और शत्रुध्न को कहा गया कि राम से सीखों। राम ने कभी स्थितियों का बहाना नहीं बनाया। सभी परिस्थितियों में सहज, शांत रहे। परमभक्त ब्रम्हालीन महात्मा दर्शनानंद का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि जो भी उनसे भक्ति सीखा वह आज भी गुरुमय है। गुरु के रहते कोई गुरु नहीं होता गुरुमय हो जाता है। आश्रम में 14 अप्रैल को विशेष संगीत और वैशाखी पर कार्यक्रम आयोजित किया गया है।

2 comments:

  1. We should perform our duties either it is favourable condition or tough conditions

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